हौसला 

ये हौसला कैसे झुके 

ये आरज़ू कैसे रुके 

राह पे कांटे बिखरे अगर 

उसपे तो फिर भी चलना ही है 

शाम छुपा ले सूरज मगर 

रात को एक दिन ढलना ही है 

~ मीर अली हुसैन


लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,

कोशिश करने वालों की हार नहीं होती...


नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,

चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है,

मन का विश्वास, रगों में साहस भरता है...

चढ़ कर गिरना, गिर कर चढ़ना - नहीं अखरता है


आखिर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,

कोशिश करने वालों की हार नहीं होती...


डुबकियां सिंधु में, जब गोताखोर लगाता है

जा जा कर, हर बार, खाली हाथ लौट आता है

मिलते ना सहज ही मोती गहरे पानी में,

बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में...


मुट्ठी उसकी खाली, हर बार नहीं होती...

कोशिश करने वालों की हार नहीं होती...


असफलता एक चुनौती है, स्वीकार करो

क्या कमी रह गयी, देखो और सुधार करो,

जब तक सफल ना हो, नींद चैन सब त्यागो तुम,

संघर्षों का मैदान छोड़ मत भागो तुम,


कुछ किये बिना ही, जय जयकार नहीं होती...

कोशिश करने वालों की हार नहीं होती...


कोशिश करने वालों की हार नहीं होती…

~ सोहन लाल द्विवेदी (गलती से हरिवंश राय बच्चन की रचना के रूप में प्रचारित किया जाता है)


तदबीर के दस्त-ए-रंगीं से तक़दीर दरख़्शाँ होती है 

क़ुदरत भी मदद फ़रमाती है जब कोशिश-ए-इंसाँ होती है

~ हफ़ीज़ बनारसी


आशा का दीपक

यह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल दूर नहीं है

थक कर बैठ गये क्या भाई मन्जिल दूर नहीं है


चिन्गारी बन गयी लहू की बून्द गिरी जो पग से

चमक रहे पीछे मुड देखो चरण-चिनह जगमग से

शुरू हुई आराध्य भूमि यह क्लांत नहीं रे राही;

और नहीं तो पाँव लगे हैं क्यों पड़ने डगमग से

बाकी होश तभी तक, जब तक जलता तूर नहीं है

थक कर बैठ गये क्या भाई मन्जिल दूर नहीं है


अपनी हड्डी की मशाल से हृदय चीरते तम का,

सारी रात चले तुम दुख झेलते कुलिश निर्मम का।

एक खेप है शेष, किसी विध पार उसे कर जाओ;

वह देखो, उस पार चमकता है मन्दिर प्रियतम का।

आकर इतना पास फिरे, वह सच्चा शूर नहीं है;

थककर बैठ गये क्या भाई! मंज़िल दूर नहीं है।


दिशा दीप्त हो उठी प्राप्त कर पुण्य-प्रकाश तुम्हारा,

लिखा जा चुका अनल-अक्षरों में इतिहास तुम्हारा।

जिस मिट्टी ने लहू पिया, वह फूल खिलाएगी ही,

अम्बर पर घन बन छाएगा ही उच्छ्वास तुम्हारा।

और अधिक ले जाँच, देवता इतना क्रूर नहीं है।

थककर बैठ गये क्या भाई! मंज़िल दूर नहीं है।

~ रामधारी सिंह "दिनकर"


 दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है 

लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है 

~ फैज़ अहमद फैज़ 


नर हो, न निराश करो मन को

कुछ काम करो, कुछ काम करो

जग में रह कर कुछ नाम करो

यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो

समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो

कुछ तो उपयुक्त करो तन को

नर हो, न निराश करो मन को।


संभलो कि सुयोग न जाय चला

कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला

समझो जग को न निरा सपना

पथ आप प्रशस्त करो अपना

अखिलेश्वर है अवलंबन को

नर हो, न निराश करो मन को।


जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ

फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ

तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो

उठके अमरत्व विधान करो

दवरूप रहो भव कानन को

नर हो न निराश करो मन को।


निज गौरव का नित ज्ञान रहे

हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे

मरणोंत्‍तर गुंजित गान रहे

सब जाय अभी पर मान रहे

कुछ हो न तज़ो निज साधन को

नर हो, न निराश करो मन को।


प्रभु ने तुमको कर दान किए

सब वांछित वस्तु विधान किए

तुम प्राप्‍त करो उनको न अहो

फिर है यह किसका दोष कहो

समझो न अलभ्य किसी धन को

नर हो, न निराश करो मन को।


किस गौरव के तुम योग्य नहीं

कब कौन तुम्हें सुख भोग्य नहीं

जान हो तुम भी जगदीश्वर के

सब है जिसके अपने घर के

फिर दुर्लभ क्या उसके जन को

नर हो, न निराश करो मन को।


करके विधि वाद न खेद करो

निज लक्ष्य निरन्तर भेद करो

बनता बस उद्‌यम ही विधि है

मिलती जिससे सुख की निधि है

समझो धिक् निष्क्रिय जीवन को

नर हो, न निराश करो मन को

कुछ काम करो, कुछ काम करो।

- मैथिलीशरण गुप्त


ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले 

ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है 

~ अल्लामा इक़बाल

 

कश्तियाँ सब की किनारे पे पहुँच जाती हैं 

नाख़ुदा जिन का नहीं उन का ख़ुदा होता है 

~ अमीर मीनाई


कोशिश भी कर उमीद भी रख रास्ता भी चुन 

फिर इस के ब'अद थोड़ा मुक़द्दर तलाश कर 

~ निदा फ़ाज़ली


सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो 

सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो 


किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं 

तुम अपने आप को ख़ुद ही बदल सको तो चलो 


यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता 

मुझे गिरा के अगर तुम सँभल सको तो चलो 


कहीं नहीं कोई सूरज धुआँ धुआँ है फ़ज़ा 

ख़ुद अपने आप से बाहर निकल सको तो चलो 


यही है ज़िंदगी कुछ ख़्वाब चंद उम्मीदें 

इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो

~ निदा फ़ाज़ली 


मिरे जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा 

इसी सियाह समुंदर से नूर निकलेगा 

~ अमीर क़ज़लबाश


और इकबाल साजिद की ज़िद कुछ ऐसे निकलती है 

प्यासो रहो न दश्त में बारिश के मुंतज़िर 

मारो ज़मीं पे पाँव कि पानी निकल पड़े 

~ इक़बाल साजिद


चला जाता हूँ हँसता खेलता मौज-ए-हवादिस से 

अगर आसानियाँ हों ज़िंदगी दुश्वार हो जाए 

~ असग़र गोंडवी


तू समझता है हवादिस हैं सताने के लिए 

ये हुआ करते हैं ज़ाहिर आज़माने के लिए 

~ सय्यद सादिक़ हुसैन


अग्निपथ

वृक्ष हों भले खड़े,

हों घने, हों बड़े,

एक पत्र छाँह भी

मांग मत! मांग मत! मांग मत!

अग्निपथ! अग्निपथ! अग्निपथ!


तू न थकेगा कभी,

तू न थमेगा कभी,

तू न मुड़ेगा कभी,

कर शपथ! कर शपथ! कर शपथ!

अग्निपथ! अग्निपथ! अग्निपथ!


यह महान दृश्य है,

चल रहा मनुष्य है,

अश्रु, स्वेद, रक्त से

लथ-पथ, लथ-पथ, लथ-पथ,

अग्निपथ! अग्निपथ! अग्निपथ!

~ हरिवंश राय बच्चन 


यह हार एक विराम है

जीवन महासंग्राम है

तिल-तिल मिटूँगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं ।

वरदान माँगूँगा नहीं ।

क्‍या हार में क्‍या जीत में

किंचित नहीं भयभीत मैं

संघर्ष पथ पर जो मिले यह भी सही वह भी सही ।

वरदान माँगूँगा नहीं ।

चाहे हृदय को ताप दो

चाहे मुझे अभिशाप दो

कुछ भी करो कर्त्तव्य पथ से किन्तु भागूँगा नहीं ।

वरदान माँगूँगा नहीं ।

~ शिव मंगल सिंह सुमन 


सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है 

देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है 

वक़्त आने दे दिखा देंगे तुझे ऐ आसमाँ 

हम अभी से क्यूँ बताएँ क्या हमारे दिल में है 

अब न अगले वलवले हैं और न वो अरमाँ की भीड़ 

सिर्फ़ मिट जाने की इक हसरत दिल-ए-'बिस्मिल' में

~ बिस्मल अज़ीमाबादी



वीर

सच है, विपत्ति जब आती है,

कायर को ही दहलाती है,

सूरमा नही विचलित होते,

क्षण एक नहीं धीरज खोते,


विघ्नों को गले लगाते हैं,

काँटों में राह बनाते हैं


मुँह से न कभी उफ़ कहते हैं,

संकट का चरण न गहते हैं,

जो आ पड़ता सब सहते हैं,

उद्योग-निरत नित रहते हैं,


शूलों का मूल नसाते हैं,

बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं।


है कौन विघ्न ऐसा जग में,

टिक सके आदमी के मग में?

खम ठोक ठेलता है जब नर,

पर्वत के जाते पाँव उखड़,


मानव जब ज़ोर लगाता है,

पत्थर पानी बन जाता है।


गुण बड़े एक से एक प्रखर,

है छिपे मानवों के भीतर,

मेंहदी में जैसे लाली हो,

वर्तिका-बीच उजियाली हो,

बत्ती जो नही जलाता है,

रोशनी नहीं वह पाता है।

~ रामधारी सिंह दिनकर


गीत नया गाता हूं

टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर

पत्थर की छाती मे उग आया नव अंकुर

झरे सब पीले पात कोयल की कुहुक रात

प्राची मे अरुणिमा की रेख देख पता हूं

गीत नया गाता हूं


टूटे हुए सपनों की सुने कौन  सिसकी

अन्तर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी

हार नहीं मानूंगा, रार नई ठानूंगा,

काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं

गीत नया गाता हूं

~ अटल बिहारी वाजपेयी (https://youtu.be/ziOQuP0v8Is)


नहीं डर किसी का आज

नहीं डर किसी का आज, एक दिन

मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास

नहीं डर किसी का आज एक दिन…

~ गिरिजा कुमार माथुर