ख़्वाब  

उठो ये मंज़र-ए-शब-ताब देखने के लिए 

कि नींद शर्त नहीं ख़्वाब देखने के लिए

~ इरफ़ान सिद्दीक़ी


आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो 

ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो

ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहे 

नींद रक्खो या न रक्खो ख़्वाब मेयारी रखो 

~ राहत इंदौरी


...क्योंकि सपना है अभी भी

इसलिए तलवार टूटी अश्व घायल

कोहरे डूबी दिशाएं

कौन दुश्मन, कौन अपने लोग, सब कुछ धुंध धूमिल

किन्तु कायम युद्ध का संकल्प है अपना अभी भी

...क्योंकि सपना है अभी भी!

~ धर्मवीर भारती


और तो क्या था बेचने के लिए 

अपनी आँखों के ख़्वाब बेचे हैं 

~ जौन एलिया


मेरी रुस्वाई के अस्बाब हैं मेरे अंदर 

आदमी हूँ सो बहुत ख़्वाब हैं मेरे अंदर 

~ असअ'द बदायुनी


इक मुअम्मा है समझने का न समझाने का 

ज़िंदगी काहे को है ख़्वाब है दीवाने का 

~ फ़ानी बदायुनी


ज़िंदगी ख़्वाब है, ख़्वाब में झूठ क्या

और भला सच है क्या

~ शैलेन्द्र (फ़िल्म - जागते रहो)


स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से

लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से

और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे।

कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे।

~ गोपालदास "नीरज"


कभी जो ख़्वाब था वो पा लिया है 

मगर जो खो गई वो चीज़ क्या थी 

~ जावेद अख़्तर


आज एक बात तो बताओ मुझे

ज़िन्दगी ख्वाब क्यो दिखाती है


क्या सितम है कि अब तेरी सूरत

गौर करने पर याद आती है


कौन इस घर की देख भाल करे

रोज़ एक चीज़ टूट जाती है

~ जॉन एलिया


माना कि सब के सामने मिलने से है हिजाब 

लेकिन वो ख़्वाब में भी न आएँ तो क्या करें 

~ अख़्तर शीरानी


जिस तरह ख़्वाब मिरे हो गए रेज़ा रेज़ा 

उस तरह से न कभी टूट के बिखरे कोई 

~ परवीन शाकिर


आँखों में जो भर लोगे तो काँटों से चुभेंगे 

ये ख़्वाब तो पलकों पे सजाने के लिए हैं 

~ जाँ निसार अख़्तर


छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ बहाने वालों

कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है।

सपना क्या है, नयन सेज पर

सोया हुआ आँख का पानी

और टूटना है उसका ज्यों

जागे कच्ची नींद जवानी

गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों

कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है।

~ गोपालदास "नीरज"


यही है ज़िंदगी कुछ ख़्वाब चंद उम्मीदें 

इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो

~ निदा फ़ाज़ली


सपना झरना नींद का, जागी आँखें प्यास

पाना, खोना, खोजना, साँसों का इतिहास


नदिया सींचे खेत को, तोता कुतरे आम

सूरज ठेकेदार सा, सबको बाँटे काम


अच्छी संगत बैठकर, संगी बदले रूप

जैसे मिलकर आम से, मीठी हो गई धूप


बरखा सबको दान दे, जिसकी जितनी प्यास

मोती-सी ये सीप में, माटी में ये घास

~ निदा फ़ाज़ली


सरफ़राज़ ख़ालिद की जुगत देखिये 

उसी के ख़्वाब थे सारे उसी को सौंप दिए 

सो वो भी जीत गया और मैं भी हारा नहीं 

~ सरफ़राज़ ख़ालिद


और साहिर साहब की परेशानी 

मेरे ख़्वाबों में भी तू मेरे ख़यालों में भी तू 

कौन सी चीज़ तुझे तुझ से जुदा पेश करूँ

~ साहिर लुधियानवी


चौंक पड़ता हूँ ख़ुशी से जो वो आ जाते हैं 

ख़्वाब में ख़्वाब की ताबीर बिगड़ जाती है 

~ ज़हीर देहलवी


तूने क्या सपना देखा है?

पलक रोम पर बूँदें सुख की,

हँसती सी मुद्रा कुछ मुख की,

सोते में क्या तूने अपना बिगड़ा भाग्य बना देखा है।

तूने क्या सपना देखा है?


नभ में कर क्यों फैलाता है?

किसको भुज में भर लाता है?

प्रथम बार सपने में तूने क्या कोई अपना देखा है?

तूने क्या सपना देखा है?


मृगजल से ही ताप मिटा ले

सपनों में ही कुछ रस पा ले

मैंने तो तन-मन का सपनों में भी बस तपना देखा है!

तूने क्या सपना देखा है?

~ हरिवंशराय बच्चन

 

इन सपनों के पंख न काटो

इन सपनों की गति मत बाँधो!


सौरभ उड़ जाता है नभ में

फिर वह लौट कहाँ आता है?

बीज धूलि में गिर जाता जो

वह नभ में कब उड़ पाता है?

अग्नि सदा धरती पर जलती

धूम गगन में मँडराता है।

सपनों में दोनों ही गति है

उडकर आँखों में ही आता है।

इसका आरोहण मत रोको

इसका अवरोहण मत बाँधो!


मुक्त गगन में विचरण कर यह

तारों में फिर मिल जायेगा,

मेघों से रंग औ’ किरणों से

दीप्ति लिए भू पर आयेगा।

स्वर्ग बनाने का फिर कोई शिल्प

भूमि को सिखलायेगा।

नभ तक जाने से मत रोको

धरती से इसको मत बाँधो!


इन सपनों के पंख न काटो

इन सपनों की गति मत बाँधो!

~ महादेवी वर्मा


हो मधुर सपना तुम्हारा!


पलक पर यह स्नेह चुम्बन

पोंछ दे सब अश्रु के कण,

नींद की मदिरा पिलाकर दे भुला जग-क्रूर-कारा!

हो मधुर सपना तुम्हारा!


दे दिखाई विश्व ऐसा,

है रचा विधि ने न जैसा,

दूर जिससे हो गया है बहिर अंतर्द्वन्द सारा!

हो मधुर सपना तुम्हारा!


कंठ में हो गान ऐसा,

था सुना जग ने न जैसा,

और स्वर से स्वर मिलाकर गा रहा हो विश्व सारा!

हो मधुर सपना तुम्हारा!

~ हरिवंशराय बच्चन