हिज्र 

वस्ल में हिज्र का डर याद आया 

ऐन जन्नत में सक़र याद आया

~ मिर्ज़ा ग़ालिब

वस्ल : मुलाक़ात

सक़र : नर्क, दोज़ख 


मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः । यत् क्रौञ्चमिथुनादेकमवधीः काममोहितम् ॥

~ वाल्मीकि (रामायण का प्रथम श्लोक - निषाद द्वारा क्रौंच वध से भाव विह्वल मन की उत्पत्ति)

 “O Nishada (hunter), because you killed one of the Krauncha (Crane or Egret) couple who was engaged in love, may you never obtain peace.”


कितना आसाँ था तिरे हिज्र में मरना जानाँ 

फिर भी इक उम्र लगी जान से जाते जाते

~ अहमद फ़राज़


आई होगी किसी को हिज्र में मौत 

मुझ को तो नींद भी नहीं आती

~ अकबर इलाहाबादी


आप का ए'तिबार कौन करे 

रोज़ का इंतिज़ार कौन करे

हिज्र में ज़हर खा के मर जाऊँ 

मौत का इंतिज़ार कौन करे

~ दाग़ देहलवी


हिज्र की आँखों से आँखें तो मिलाते जाइए 

हिज्र में करना है क्या ये तो बताते जाइए

~ जौन एलिया


जब मेरे सब चराग़-ए-तमन्ना हवा के हैं 

जब मेरे सारे ख़्वाब किसी बेवफ़ा के हैं 

फिर मुझ को चाहने का तुम्हें कोई हक़ नहीं 

तन्हा कराहने का तुम्हें कोई हक़ नहीं

~ जौन एलिया


हम से न पूछो हिज्र के क़िस्से 

अपनी कहो अब तुम कैसे हो

~ मोहसिन नक़वी

चलने का हौसला नहीं रुकना मुहाल कर दिया 

इश्क़ के इस सफ़र ने तो मुझ को निढाल कर दिया

मुमकिना फ़ैसलों में एक हिज्र का फ़ैसला भी था 

हम ने तो एक बात की उस ने कमाल कर दिया

~ परवीन शाकिर

 

पूरा दुख और आधा चाँद 

हिज्र की शब और ऐसा चाँद

~ परवीन शाकिर

 

शून्य मेरा जन्म था

अवसान है मुझको सबेरा;

प्राण आकुल के लिए

संगी मिला केवल अंधेरा;

मिलन का मत नाम ले मैं विरह में चिर हूँ!

~ महादेवी वर्मा (कविता : शलभ मैं शापमय वर हूँ!)


बहुत दिनों में मोहब्बत को ये हुआ मा'लूम 

जो तेरे हिज्र में गुज़री वो रात रात हुई

~ फ़िराक़ गोरखपुरी


बज़्म-ए-ख़याल में तिरे हुस्न की शम्अ जल गई 

दर्द का चाँद बुझ गया हिज्र की रात ढल गई

~ फ़ैज़ अहमद फ़ैज़


कब याद में तेरा साथ नहीं कब हाथ में तेरा हाथ नहीं 

सद-शुक्र कि अपनी रातों में अब हिज्र की कोई रात नहीं

~ फ़ैज़ अहमद फ़ैज़


तेरा हिज्र मेरा नसीब है तेरा ग़म ही मेरी हयात है

मुझे तेरी दूरी का ग़म हो क्यों तू कहीं भी हो मेरे साथ है

~ निदा फ़ाज़ली


दिल हिज्र के दर्द से बोझल है अब आन मिलो तो बेहतर हो 

इस बात से हम को क्या मतलब ये कैसे हो ये क्यूँकर हो

~ इब्न-ए-इंशा


उदास एक मुझी को तो कर नहीं जाता

वह मुझसे रूठ के अपने भी घर नही जाता


वह दिन गये कि मोहब्बत थी जान की बाज़ी

किसी से अब कोई बिछड़े तो मर नहीं जाता


तुम्हारा प्यार तो सांसों में सांस लेता है

जो होता नशा तो इक दिन उतर नहीं जाता?


पुराने रिश्तों की बेग़रिज़यां न समझेगा

वह अपने ओहदे से जब तक उतर नहीं जाता


 'वसीम' उसकी तडप है, तो उसके पास चलो

कभी कुआं किसी प्यासे के घर नहीं जाता

~ वसीम बरेलवी


याद है जो उसी को याद करो 

हिज्र की दूसरी दवा ही नहीं

~ फ़हमी बदायूनी


और ये सब देख कर अमीर मीनाई कह बैठते हैं 

देख ले बुलबुल ओ परवाना की बेताबी को 

हिज्र अच्छा, न हसीनों का विसाल अच्छा है

~ अमीर मीनाई


ख़ंजर चले किसी पे तड़पते हैं हम अमीर

सारे जहां का दर्द हमारे जिगर में है

~ अमीर मीनाई


वो इश्क़ जो हम से रूठ गया अब उस का हाल बताएँ क्या 

कोई मेहर नहीं कोई क़हर नहीं फिर सच्चा शेर सुनाएँ क्या 


इक हिज्र जो हम को लाहक़ है ता-देर उसे दोहराएँ क्या 

वो ज़हर जो दिल में उतार लिया फिर उस के नाज़ उठाएँ क्या 


फिर आँखें लहू से ख़ाली हैं ये शमएँ बुझने वाली हैं 

हम ख़ुद भी किसी के सवाली हैं इस बात पे हम शरमाएँ क्या 


इक आग ग़म-ए-तन्हाई की जो सारे बदन में फैल गई 

जब जिस्म ही सारा जलता हो फिर दामन-ए-दिल को बचाएँ क्या 


हम नग़्मा-सरा कुछ ग़ज़लों के हम सूरत-गर कुछ ख़्वाबों के 

बे-जज़्बा-ए-शौक़ सुनाएँ क्या कोई ख्वाब न हो तो बताएँ क्या

~ अतहर नफ़ीस

 

प्रियजन दृग-सीमा से जभी दूर होते

ये नयन-वियोगी रक्त के अश्रु रोते

सहचर-सुख क्रीड़ा नेत्र के सामने भी

प्रति क्षण लगती है नाचने चित्त में भी


प्रिय, पदरज मेघाच्छन्न जो हो रहा हो

यह हृदय तुम्हारा विश्व को खो रहा हो

स्मृति-सुख चपला की क्या छटा देखते हो

अविरल जलधारा अश्रु में भीगते हो


हृदय द्रवित होता ध्यान में भूत ही के

सब सबल हुए से दीखते भाव जी के

प्रति क्षण मिलते है जो अतीताब्धि ही में

गत निधि फिर आती पूर्ण की लब्धि ही में


यह सब फिर क्या है, ध्यान से देखिये तो

यह विरह पुराना हो रहा जाँचिये तो

हम अलग हुए हैं पूर्ण से व्यक्त होके

वह स्मृति जगती है प्रेम की नींद सोके

~ जयशंकर प्रसाद (कविता : विरह).  

 

तआ'रुफ़ रोग हो जाए तो उस का भूलना बेहतर  

त'अल्लुक़ बोझ बन जाए तो उस को तोड़ना अच्छा 

वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन 

उसे इक ख़ूब-सूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा 

चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों

~ साहिर लुधियानवी


बिछड़े अभी तो हम, बस कल परसों

जिऊंगी मैं कैसे इस हाल में बरसों

मौत ना आई तेरी याद क्यों आई

हाय लम्बी जुदाई


एक तो सजन मेरे पास नहीं रे

दूजे मिलन दी कोई आस नहीं रे

उसपे ये सावन आया

आग लगायी 

हाय लम्बी जुदाई


टूटे ज़माने तेरे

हाथ निगोड़े, हाथ निगोड़े

जिन से दिलों के तूने शीशे तोड़े, 

हिज्र की ऊंची दीवार बनायी

हाय लम्बी जुदाई


बाग़ उजड़ गए खिलने से पहले

पंछी बिछड़ गए मिलने से पहले

कोयल की कूक ने हुक उठाई 

हाय लम्बी जुदाई

~ आनन्द बक्शी (फिल्म Hero, गायिका - रेशमा )