सफ़र 

चौराहे पर लुटता चीर,

प्यादे से पिट गया वज़ीर,

चलूँ आख़िरी चाल कि बाज़ी छोड़ विरक्ति रचाऊँ मैं?

राह कौन-सी जाऊँ मैं?

सपना जन्मा और मर गया,

मधु ऋतु में ही बाग़ झर गया,

तिनके टूटे हुए बटोरूँ या नवसृष्टि सजाऊँ मैं?

राह कौन-सी जाऊँ मैं?

दो दिन मिले उधार में

घाटों के व्यापार में

क्षण-क्षण का हिसाब लूँ या निधि शेष लुटाऊँ मैं?

राह कौन-सी जाऊँ मैं?

~ अटल बिहारी वाजपेयी  (मेरी इक्यावन कविताएँ)



जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता

मुझे पामाल रस्तों का सफ़र अच्छा नहीं लगता 


ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना हामी भर लेना

बहुत हैं फ़ाएदे इस में मगर अच्छा नहीं लगता


मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है

किसी का भी हो सर क़दमों में सर अच्छा नहीं लगता


बुलंदी पर उन्हें मिट्टी की खुशबू तक नहीं आती

ये वो शाख़ें हैं जिन को अब शजर अच्छा नहीं लगता 


ये क्यूँ बाक़ी रहे आतिश-ज़नो ये भी जला डालो 

कि सब बेघर हों और मेरा हो घर अच्छा नहीं लगता

~ जावेद अख़्तर


अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं

रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं


पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है

अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम हैं


वक़्त के साथ है मिट्टी का सफ़र सदियों से

किसको मालूम कहाँ के हैं किधर के हम हैं


चलते रहते हैं कि चलना है मुसाफ़िर का नसीब

सोचते रहते हैं किस राहगुज़र के हम हैं


हम वहाँ हैं जहाँ कुछ भी नहीं रस्ता न दयार 

अपने ही खोए हुए शाम ओ सहर के हम हैं


गिनतियों में ही गिने जाते हैं हर दौर में हम

हर क़लमकार की बेनाम ख़बर के हम हैं

~ निदा फ़ाज़ली


मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवाला,

'किस पथ से जाऊँ?' असमंजस में है वह भोलाभाला,

अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ -

'राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।'। ६।


चलने ही चलने में कितना जीवन, हाय, बिता डाला!

'दूर अभी है', पर, कहता है हर पथ बतलानेवाला,

हिम्मत है न बढूँ आगे को,साहस है न फिरुँ पीछे,

किंकर्तव्यविमूढ़ मुझे कर दूर खड़ी है मधुशाला।।७।


पथिक बना मैं घूम रहा हूँ, सभी जगह मिलती हाला,

सभी जगह मिल जाता साकी, सभी जगह मिलता प्याला,

मुझे ठहरने का, हे मित्रों, कष्ट नहीं कुछ भी होता,

मिले न मंदिर, मिले न मस्जिद, मिल जाती है मधुशाला।।४७।


छोटे-से जीवन में कितना प्यार करुँ, पी लूँ हाला,

आने के ही साथ जगत में कहलाया 'जानेवाला',

स्वागत के ही साथ विदा की होती देखी तैयारी,

बंद लगी होने खुलते ही मेरी जीवन-मधुशाला।।६६।

~ हरिवंशराय बच्चन


डर हम को भी लगता है रस्ते के सन्नाटे से

लेकिन एक सफ़र पर ऐ दिल अब जाना तो होगा

~ जावेद अख़्तर


जितना कम सामान रहेगा

उतना सफ़र आसान रहेगा


जितनी भारी गठरी होगी

उतना तू हैरान रहेगा


उससे मिलना नामुमकिन है

जब तक ख़ुद का ध्यान रहेगा


हाथ मिलें और दिल न मिलें

ऐसे में नुक़सान रहेगा


जब तक मन्दिर और मस्जिद हैं

मुश्किल में इंसान रहेगा


‘नीरज’ तो कल यहाँ न होगा

उसका गीत-विधान रहेगा

~ गोपालदास "नीरज"


अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए

जिस में इंसान को इंसान बनाया जाए

 ~ गोपालदास "नीरज"


वह मुसाफिर क्या जिसे कुछ शूल ही पथ के थका दें?

हौसला वह क्या जिसे कुछ मुश्किलें पीछे हटा दें?

वह प्रगति भी क्या जिसे कुछ रंगिनी कलियाँ तितलियाँ,

मुस्कुराकर गुनगुनाकर ध्येय-पथ, मंज़िल भुला दें?

जिन्दगी की राह पर केवल वही पंथी सफल है,

आँधियों में, बिजलियों में जो रहे अविचल मुसाफिर!

पंथ पर चलना तुझे तो मुस्कुराकर चल मुसाफिर॥

~ गोपालदास "नीरज"


भले दिनों की बात है

भली सी एक शक्ल थी

न ये कि हुस्न-ए-ताम हो

न देखने में आम सी

न ये कि वो चले तो कहकशाँ सी रहगुज़र लगे

मगर वो साथ हो तो फिर भला भला सफ़र लगे

~ अहमद फ़राज़


ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा

क़ाफ़िला साथ और सफ़र तन्हा

~ गुलज़ार


ज़िंदगी तनहा सफ़र की रात है

अपने–अपने हौसले की बात है


किस अकीदे की दुहाई दीजिए

हर अकीदा आज बेऔकात है


क्या पता पहुँचेंगे कब मंजिल तलक

घटते-बढ़ते फ़ासले का साथ है

~ जाँ निसार अख़्तर


दिल ना उम्मीद तो नहीं, नाकाम ही तो है 

लम्बी है ग़म की शाम, मगर शाम ही तो है 

ये सफ़र बहुत है कठिन मगर 

ना उदास हो मेरे हमसफ़र 

ये सितम की रात है ढलने को 

है अन्धेरा गम का पिघलने को 

ज़रा देर इस में लगे अगर, ना उदास हो मेरे हमसफ़र 

नहीं रहने वाली ये मुश्किलें 

ये हैं अगले मोड़ पे मंज़िलें 

मेरी बात का तू यकीन कर, ना उदास हो मेरे हमसफ़र 

कभी ढूँढ लेगा ये कारवां 

वो नई ज़मीन नया आसमान 

जिसे ढूँढती है तेरी नजर, ना उदास हो मेरे हमसफ़र 

~ जावेद अख़्तर (1942 - A Love Story)


कुछ यादगार-ए-शहर-ए-सितमगर ही ले चलें

आए हैं इस गली में तो पत्थर ही ले चलें


यूँ किस तरह कटेगा कड़ी धूप का सफ़र

सर पर ख़याल-ए-यार की चादर ही ले चलें

~ नासिर काज़मी


रात के टुकड़ों पे पलना छोड़ दे

शम्अ से कहना के जलना छोड़ दे


मुश्किलें तो हर सफ़र का हुस्न हैं,

कैसे कोई राह चलना छोड़ दे


तुझसे उम्मीदे- वफ़ा बेकार है,

कैसे इक मौसम बदलना छोड़ दे


मैं तो ये हिम्मत दिखा पाया नहीं,

तू ही मेरे साथ चलना छोड़ दे


कुछ तो कर आदाबे-महफ़िल का लिहाज़,

यार ! ये पहलू बदलना छोड़ दे.

~ वसीम बरेलवी


सफ़र की हद है वहाँ तक कि कुछ निशान रहे|

चले चलो के जहाँ तक ये आसमान रहे|


ये क्या उठाये क़दम और आ गई मंज़िल,

मज़ा तो जब है के पैरों में कुछ थकान रहे|


वो शख़्स मुझ को कोई जालसाज़ लगता है,

तुम उस को दोस्त समझते हो फिर भी ध्यान रहे|


मुझे ज़मीं की गहराईयों ने दाब लिया,

मैं चाहता था मेरे सर पे आसमान रहे|


अब अपने बीच मरासिम नहीं अदावत है,

मगर ये बात हमारे ही दर्मियान रहे|


मगर सितारों की फसलें उगा सका न कोई,

मेरी ज़मीन पे कितने ही आसमान रहे|


वो एक सवाल है फिर उस का सामना होगा,

दुआ करो कि सलामत मेरी ज़बान रहे|

~ राहत इन्दौरी

 

जिस दिन से चला हूँ मिरी मंज़िल पे नज़र है

आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा


ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं? 

तुमने मिरा काँटों भरा बिस्तर नहीं देखा

~ बशीर बद्र


जीवन में एक सितारा था

माना वह बेहद प्यारा था

वह डूब गया तो डूब गया

अम्बर के आनन को देखो

कितने इसके तारे टूटे

कितने इसके प्यारे छूटे

जो छूट गए फिर कहाँ मिले

पर बोलो टूटे तारों पर

कब अम्बर शोक मनाता है

जो बीत गई सो बात गई


जीवन में वह था एक कुसुम

थे उसपर नित्य निछावर तुम

वह सूख गया तो सूख गया

मधुवन की छाती को देखो

सूखी कितनी इसकी कलियाँ

मुर्झाई कितनी वल्लरियाँ

जो मुर्झाई फिर कहाँ खिली

पर बोलो सूखे फूलों पर

कब मधुवन शोर मचाता है

जो बीत गई सो बात गई


जीवन में मधु का प्याला था

तुमने तन मन दे डाला था

वह टूट गया तो टूट गया

मदिरालय का आँगन देखो

कितने प्याले हिल जाते हैं

गिर मिट्टी में मिल जाते हैं

जो गिरते हैं कब उठतें हैं

पर बोलो टूटे प्यालों पर

कब मदिरालय पछताता है

जो बीत गई सो बात गई


मृदु मिटटी के हैं बने हुए

मधु घट फूटा ही करते हैं

लघु जीवन लेकर आए हैं

प्याले टूटा ही करते हैं

फिर भी मदिरालय के अन्दर

मधु के घट हैं मधु प्याले हैं

जो मादकता के मारे हैं

वे मधु लूटा ही करते हैं

वह कच्चा पीने वाला है

जिसकी ममता घट प्यालों पर

जो सच्चे मधु से जला हुआ

कब रोता है चिल्लाता है

जो बीत गई सो बात गई

~ हरिवंशराय बच्चन


सब जीवन बीता जाता है

धूप छाँह के खेल सदॄश

सब जीवन बीता जाता है


समय भागता है प्रति क्षण में,

नव-अतीत के तुषार-कण में,

हमें लगा कर भविष्य-रण में,

आप कहाँ छिप जाता है

सब जीवन बीता जाता है


बुल्ले, नहर, हवा के झोंके,

मेघ और बिजली के टोंके,

किसका साहस है कुछ रोके,

जीवन का वह नाता है

सब जीवन बीता जाता है


वंशी को बस बज जाने दो,

मीठी मीड़ों को आने दो,

आँख बंद करके गाने दो

जो कुछ हमको आता है


सब जीवन बीता जाता है.

~ जयशंकर प्रसाद