मुस्कान

Everyone smiles in the same language 

~ George Carlin


बाप की उँगली थामे

इक नन्हा सा बच्चा


पहले-पहल मेले में गया तो

अपनी भोली-भाली


कंचों जैसी आँखों से

इक दुनिया देखी


ये क्या है और वो क्या है

सब उस ने पूछा


बाप ने झुक कर

कितनी सारी चीज़ों और खेलों का


उस को नाम बताया

नट का


बाज़ीगर का

जादूगर का


उस को काम बताया

फिर वो घर की जानिब लौटे


गोद के झूले में

बच्चे ने बाप के कंधे पर सर रक्खा


बाप ने पूछा

नींद आती है


वक़्त भी एक परिंदा है

उड़ता रहता है


गाँव में फिर इक मेला आया

बूढ़े बाप ने काँपते हाथों से


बेटे की बाँह को थामा

और बेटे ने


ये क्या है और वो क्या है

जितना भी बन पाया


समझाया

बाप ने बेटे के कंधे पर सर रक्खा


बेटे ने पूछा

नींद आती है


बाप ने मुड़ के

याद की पगडंडी पर चलते


बीते हुए

सब अच्छे बुरे


और कड़वे मीठे

लम्हों के पैरों से उड़ती


धूल को देखा

फिर


अपने बेटे को देखा

होंटों पर


इक हल्की सी मुस्कान आई

हौले से बोला


हाँ!

मुझ को अब नींद आती है

~ जावेद अख़्तर



नींद में मुस्कान


शिशु सोते नहीं अर्द्धरात्रि तक


विश्राम भी नहीं करेंगे वे

थोड़ा और हँसेंगे अभी


और बताएँगे तुम्हें कि हँसना क्या होता है?

शिशु अपनी मुस्कान से याद दिलाएँगे तुम्हें


प्रेमिका के पहले स्पर्श की,

लुहार के घर नरेगा के पैसे आने के बाद


द्वार पर खड़ी मुलकती उसकी लुगाई की,

बेटी को विदा कर एकांत में बैठे माँ-बाप की।


सोते हुए शिशु

विचरणरत हैं अपने माँ-बाबा के बाएँ निलयों में,


खेल रहे हैं बर्तन माँजती माँ के हृदय में

छींके में गिरते बर्तनों की थिरक पर।


शिशु सोते नहीं अर्द्धरात्रि तक

विश्राम भी नहीं करेंगे वे।


और देखिए

नींद में सोते हुए शिशु


अचानक मुलकते हैं तो

कितने आत्मीय लगते हैं!

~ राजेंद्र देथा



बस में मुस्कराता बच्चा


बस में मुस्कराता बच्चा

बच्चे तुम मुस्कुरा रहे हो

बाक़ी सब तो मुँह फुलाए खड़े या बैठे हैं


वह भारी-भरकम औरत

अपना चेचक के दाग़ों से भरा चेहरा


अपने हाव-भाव से

और कुरूप बना रही है


वह गंजा आदमी

अपने परिचित से बतिया रहा है


बातों में 

दफ़्तर वालों को लतिया रहा है


कंबल में लिपटा कुबड़ा बूढ़ा

कंडक्टर द्वारा दस पैसे ज़्यादा लिए जाने पर


बड़बड़ा रहा है

वह कॉलेज का छात्र


अशिष्ट ऊँचे स्वर में

ड्राइवर को धमकाकर


गाड़ी आगे बढ़ाने को कह रहा है

वह लड़की


दुपट्टा मुँह में दबाकर

होंठ भींचे बैठी है


बच्चे

सिर्फ़ तुम मुस्कुरा रहे हो


बच्चे

यह काफ़ी है कि तुम मुस्कुरा रहे हो


बच्चे

तुम क्यों मुस्कुरा रहे हो।


~ राजीव सभरवाल


तुम्हारी यह दंतुरित मुस्कान

मृतक में भी डाल देगी जान


धूलि-धूसर तुम्हारे ये गात...

छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात


परस पाकर तुम्हारा ही प्राण,

पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण


छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल

बाँस था कि बबूल?


तुम मुझे पाए नहीं पहचान?

देखते ही रहोगे अनिमेष!


थक गए हो?

आँख लूँ मैं फेर?


क्या हुआ यदि हो सके परिचित न पहली बार?

यदि तुम्हारी माँ न माध्यम बनी होती आज


मैं न सकता देख

मैं न पाता जान


तुम्हारी यह दंतुरित मुस्कान

धन्य तुम, माँ भी तुम्हारी धन्य!


चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य!

इन अतिथि से प्रिय तुम्हारा क्या रहा संपर्क


उँगलियाँ माँ की कराती रही हैं मधुपर्क

देखते तुम इधर कनखी मार


और होतीं जब कि आँखें चार

तब तुम्हारी दंतुरित मुस्कान


मुझे लगती बड़ी ही छविमान

~ नागार्जुन


ख़ुद को कितनी देर मनाना पड़ता है

लफ़्ज़ों को जब रंग लगाना पड़ता है


चोटी तक पहुँची राहों से सीखो भी

कैसे पर्वत काट के आना पड़ता है


बच्चों की मुस्कान बहुत ही महँगी है

दो दो पैसे रोज़ बचाना पड़ता है


सच का कपड़ा फूल से हल्का होता है

झूठ का पर्वत लाद के जाना पड़ता है


सूरज को गाली देने का फैशन है

छाँव की ख़ातिर पेड़ लगाना पड़ता है


दिल का क्या है जो कह दो सुन लेता है

आँखों को अक्सर समझाना पड़ता है

~ प्रताप सोमवंशी


तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो

क्या गम है जिसको छुपा रहे हो

आँखों में नमी हँसी लबों पर

क्या हाल है क्या दिखा रहे हो


बन जायेंगे ज़हर पीते पीते

ये अश्क जो पीते जा रहे हो

जिन ज़ख्मों को वक़्त भर चला है

तुम क्यों उन्हें छेड़े जा रहे हो

 

रेखाओं का खेल है मुक़द्दर

रेखाओं से मात खा रहे हो

क्या गम है जिसको छुपा रहे हो

तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो

~ क़ैफ़ी आज़मी 


तुझ को लगता है तो हाँ ठीक है मनमानी है

मुझे अब बात समझनी है न समझानी है


वर्ना वो ख़्वाब कि ता-उम्र न सोए कोई

नींद आ जाती है इस बात की आसानी है


सत्ह में इस की सिवा रेत के अब कुछ भी नहीं

या'नी रोने के लिए आँख में बस पानी है


तजरबा उस को भी कुछ ख़ास नहीं दुनिया का

ख़ाक हम ने भी ज़माने की नहीं छानी है


मेरे चेहरे पे यही देख के बिखरी मुस्कान

मैं परेशान हूँ और उस को परेशानी है


इश्क़ में इतनी सुहूलत भी नहीं पाओगे

जान पर बन पड़ी तो जान चली जानी है


हम कहाँ रूह की बातों में उलझ जाते हैं

दरमियाँ अपने तअल्लुक़ भी तो जिस्मानी है

~ धीरेंद्र सिंह फ़य्याज़


अहल-ए-उल्फ़त के हवालों पे हँसी आती है

लैला मजनूँ की मिसालों पे हँसी आती है


जब भी तकमील-ए-मोहब्बत का ख़याल आता है

मुझ को अपने ही ख़यालों पे हँसी आती है


लोग अपने लिए औरों में वफ़ा ढूँडते हैं

उन वफ़ा ढूँडने वालों पे हँसी आती है


देखने वालो तबस्सुम को करम मत समझो

उन्हें तो देखने वालों पे हँसी आती है


चाँदनी रात मोहब्बत में हसीं थी 'फ़ाकिर'

अब तो बीमार उजालों पे हँसी आती है

~ सुदर्शन फ़ाकिर


मता-ए-ग़ैर

मेरे ख़्वाबों के झरोकों को सजाने वाली

तेरे ख़्वाबों में कहीं मेरा गुज़र है कि नहीं


पूछ कर अपनी निगाहों से बता दे मुझ को

मेरी रातों के मुक़द्दर में सहर है कि नहीं


चार दिन की ये रिफ़ाक़त जो रिफ़ाक़त भी नहीं

उम्र भर के लिए आज़ार हुई जाती है


ज़िंदगी यूँ तो हमेशा से परेशान सी थी

अब तो हर साँस गिराँ-बार हुई जाती है


मेरी उजड़ी हुई नींदों के शबिस्तानों में

तू किसी ख़्वाब के पैकर की तरह आई है


कभी अपनी सी कभी ग़ैर नज़र आई है

कभी इख़्लास की मूरत कभी हरजाई है


प्यार पर बस तो नहीं है मिरा लेकिन फिर भी

तू बता दे कि तुझे प्यार करूँ या न करूँ


तू ने ख़ुद अपने तबस्सुम से जगाया है जिन्हें

उन तमन्नाओं का इज़हार करूँ या न करूँ


तू किसी और के दामन की कली है लेकिन

मेरी रातें तिरी ख़ुश्बू से बसी रहती हैं


तू कहीं भी हो तिरे फूल से आरिज़ की क़सम

तेरी पलकें मिरी आँखों पे झुकी रहती हैं


तेरे हाथों की हरारत तिरे साँसों की महक

तैरती रहती है एहसास की पहनाई में


ढूँडती रहती हैं तख़्ईल की बाँहें तुझ को

सर्द रातों की सुलगती हुई तन्हाई में


तेरा अल्ताफ़-ओ- करम एक हक़ीक़त है मगर

ये हक़ीक़त भी हक़ीक़त में फ़साना ही न हो


तेरी मानूस निगाहों का ये मोहतात पयाम

दिल के ख़ूँ करने का एक और बहाना ही न हो


कौन जाने मिरे इमरोज़ का फ़र्दा क्या है

क़ुर्बतें बढ़ के पशेमान भी हो जाती हैं


दिल के दामन से लिपटती हुई रंगीं नज़रें

देखते देखते अंजान भी हो जाती हैं


मेरी दरमांदा जवानी की तमन्नाओं के

मुज़्महिल ख़्वाब की ताबीर बता दे मुझ को



तेरे दामन में गुलिस्ता भी है वीराने भी

मेरा हासिल मेरी तक़दीर बता दे मुझ को

~ साहिर लुधियानवी


प्रेम में मुस्कान


इरादे नेक हैं नियत खरी है

तुम्हारी जेब फिर कैसे भरी है


तुम्हें पड़ जाएगी इस की भी आदत

अभी इक बार ही ग़ैरत भरी है


अदा लैला की टोना टोटका है

मोहब्बत क़ैस की जादूगरी है


वो कहते हैं कि कूज़ा-गर बड़ा है

मैं कहता हूँ बड़ी कूज़ा-गरी है


शिकन चेहरे की कर देती है ग़ाएब

तिरी मुस्कान जैसे इस्त्री है


नज़र के हारते ही दिल भी हारा

मिरी इक दिन में ग़लती दूसरी है


हमारे इश्क़ का आया दिसम्बर

तुम्हारा रूप अब भी जनवरी है


मोहब्बत काहिली में की थी हमने

अभी तो दस से छे की नौकरी है

~ चन्द्र शेखर वर्मा


मिलने का भी आख़िर कोई इम्कान बनाते

मुश्किल थी अगर कोई तो आसान बनाते


रखते कहीं खिड़की कहीं गुल-दान बनाते

दीवार जहाँ है वहाँ दालान बनाते


थोड़ी है बहुत एक मसाफ़त को ये दुनिया

कुछ और सफ़र का सर-ओ-सामान बनाते


करते कहीं एहसास के फूलों की नुमाइश

ख़्वाबों से निकलते कोई विज्दान बनाते


तस्वीर बनाते जो हम इस शोख़-अदा की

लाज़िम था कि मुस्कान ही मुस्कान बनाते


उस जिस्म को कुछ और समेटा हुआ रखते

ज़ुल्फ़ों को ज़रा और परेशान बनाते


कुछ दिन के लिए काम से फ़ुर्सत हमें मिलती

कुछ दिन के लिए ख़ुद को भी मेहमान बनाते


दो जिस्म कभी एक बदन हो नहीं सकते

मिलती जो कोई रूह तो यक जान बनाते

~ फ़ाज़िल जमीली


आँखों में तूफ़ान बहुत है

बारिश का इम्कान बहुत है


राह-ए-वफ़ा पर चलने वाले

ये रस्ता वीरान बहुत है


दिल हर ज़िद मनवा लेता है

ये बच्चा शैतान बहुत है


एक ज़रा ईमाँ बिक जाए

फिर सब कुछ आसान बहुत है


दिल का आलम महकाने को

तेरी इक मुस्कान बहुत है

~ अंजुम लुधियानवी


किसी और ग़म में इतनी ख़लिश-ए-निहाँ नहीं है

ग़म-ए-दिल मिरे रफ़ीक़ो ग़म-ए-राएगाँ नहीं है


कोई हम-नफ़स नहीं है कोई राज़-दाँ नहीं है

फ़क़त एक दिल था अब तक सो वो मेहरबाँ नहीं है


मिरी रूह की हक़ीक़त मिरे आँसुओं से पूछो

मिरा मज्लिसी तबस्सुम मिरा तर्जुमाँ नहीं है


किसी ज़ुल्फ़ को सदा दो किसी आँख को पुकारो

बड़ी धूप पड़ रही है कोई साएबाँ नहीं है


इन्हीं पत्थरों पे चल कर अगर आ सको तो आओ

मिरे घर के रास्ते में कोई कहकशाँ नहीं है

~ मुस्तफ़ा ज़ैदी


हँसी थमी है इन आँखों में यूँ नमी की तरह

चमक उठे हैं अंधेरे भी रौशनी की तरह

~ मीना कुमारी नाज़ 


मेरी इक छोटी सी कोशिश तुझ को पाने के लिए

बन गई है मसअला सारे ज़माने के लिए


रेत मेरी उम्र मैं बच्चा निराले मेरे खेल

मैं ने दीवारें उठाई हैं गिराने के लिए


वक़्त होंटों से मिरे वो भी खुरच कर ले गया

इक तबस्सुम जो था दुनिया को दिखाने के लिए


आसमाँ ऐसा भी क्या ख़तरा था दिल की आग से

इतनी बारिश एक शोले को बुझाने के लिए


छत टपकती थी अगरचे फिर भी आ जाती थी नींद

मैं नए घर में बहुत रोया पुराने के लिए


देर तक हँसता रहा उन पर हमारा बचपना

तजरबे आए थे संजीदा बनाने के लिए


मैं 'ज़फ़र' ता-ज़िंदगी बिकता रहा परदेस में

अपनी घर-वाली को इक कंगन दिलाने के लिए

~ ज़फ़र गोरखपुरी


दर्द दिल में मगर लब पे मुस्कान है

हौसलों की हमारे ये पहचान है


लाख कोशिश करो आ के जाती नहीं

याद इक बिन बुलाई सी मेहमान है


खिलखिलाता है जो आज के दौर में

इक अजूबे से क्या कम वो इंसान है


ज़र ज़मीं सल्तनत से ही होता नहीं

जो दे भूके को रोटी, वो सुल्तान है


मीर, तुलसी, ज़फ़र, जोश, मीरा, कबीर

दिल ही 'ग़ालिब' है और दिल ही 'रसखा़न' है


पाँच करता है जो, दो में दो जोड़ कर

आज-कल सिर्फ़ उस का ही गुन-गान है


ढूँडता फिर रहा फूल पर तितलियाँ

शहर में वो नया है कि नादान है


गर न समझा तो 'नीरज' लगेगी कठिन

ज़िंदगी को जो समझा तो आसान है

~ नीरज गोस्वामी


किसी के सुब्ह की मुस्कान होना

अंधेरे घर में रौशन-दान होना


कहूँ मैं क्या तुम्हें इस से ज़ियादा

मिरे बच्चो मिरी पहचान होना


सफ़र आसान मेरा कर गया है

तुम्हारा साथ इस दौरान होना


हवादिस भी सिखा जाते हैं अक्सर

बुरा होता नहीं नुक़सान होना


बड़ी मुश्किल से हाथ आता है ये फ़न

कहाँ आसान है आसान होना


हमारी आख़िरी ख़्वाहिश यही है

तुम्हारी नज़्म का उन्वान होना

~ डॉ भावना श्रीवास्तव


उस के दुश्मन हैं बहुत, आदमी अच्छा होगा

वो भी मेरी ही तरह शहर में तन्हा होगा


इतना सच बोल कि होंटों का तबस्सुम न बुझे

रौशनी ख़त्म न कर आगे अँधेरा होगा


प्यास जिस नहर से टकराई वो बंजर निकली

जिस को पीछे कहीं छोड़ आए वो दरिया होगा


मिरे बारे में कोई राय तो होगी उस की

उस ने मुझ को भी कभी तोड़ के देखा होगा


एक महफ़िल में कई महफ़िलें होती हैं शरीक

जिस को भी पास से देखोगे अकेला होगा

~ निदा फ़ाज़ली


किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार

किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार

किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार

जीना इसी का नाम है


माना अपनी जेब से फ़कीर हैं

फिर भी यारों दिल के हम अमीर हैं

मिटे जो प्यार के लिए वो ज़िन्दगी

जले बहार के लिये वो ज़िन्दगी

किसी को हो न हो हमें तो ऐतबार

जीना इसी का नाम है


रिश्ता दिल से दिल के ऐतबार का

ज़िन्दा है हमीं से नाम प्यार का

कि मर के भी किसी को याद आएंगे

किसी के आंसुओं में मुस्कुराएंगे

कहेगा फूल हर कली से बार बार

जीना इसी का नाम है

~ शैलेन्द्र