फूल
व्योम के नीचे खुला आवास मेरा;
ग्रीष्म, वर्षा, शीत का अभ्यास मेरा;
झेलता हूँ मार मारूत की निरंतर,
खेलता यों जिंदगी का खेल हंसकर।
शूल का दिन रात मेरा साथ किंतु प्रसन्न मन हूँ
मैं सुमन हूँ...
तोड़ने को जिस किसी का हाथ बढ़ता,
मैं विहंस उसके गले का हार बनता;
राह पर बिछना कि चढ़ना देवता पर,
बात हैं मेरे लिए दोनों बराबर।
मैं लुटाने को हृदय में भरे स्नेहिल सुरभि-कन हूँ
मैं सुमन हूँ...
रूप का श्रृंगार यदि मैंने किया है,
साथ शव का भी हमेशा ही दिया है;
खिल उठा हूँ यदि सुनहरे प्रात में मैं,
मुस्कराया हूँ अंधेरी रात में मैं।
मानता सौन्दर्य को- जीवन-कला का संतुलन हूँ
मैं सुमन हूँ…
~ द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
फिर छिड़ी रात बात फूलों की
रात है या बारात फूलों की
फूल के हार फूल के गजरे
शाम फूलों की रात फूलों की
आप का साथ साथ फूलों का
आप की बात बात फूलों की
~ मख़दूम मुहिउद्दीन
फूलों की तरह दिल में बसाये हुए रखना
यादों के चरागों को जलाये हुये रखना
लंबा है सफर इसमें कहीं रात तो होगी
ख्वाबों ही में हो चाहे, मुलाकात तो होगी
बीते हुए लम्हों की कसक साथ तो होगी
~ हसन कमाल
फूल रिश्तों के दर्द का अहसास भी है और मरहम भी
फूल का शाख़ पे आना भी बुरा लगता है
तू नहीं है तो ज़माना भी बुरा लगता है
ऊब जाता हूँ ख़मोशी से भी कुछ देर के बाद
देर तक शोर मचाना भी बुरा लगता है
~ शकील आज़मी
यूँ लगे दोस्त तिरा मुझ से ख़फ़ा हो जाना
जिस तरह फूल से ख़ुशबू का जुदा हो जाना
~ क़तील शिफ़ाई
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
~ अहमद फ़राज़
सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैं
ये बात है तो चलो बात कर के देखते हैं
~ अहमद फ़राज़
ज़रा इक तबस्सुम की तकलीफ करना
कि गुलज़ार में फूल मुरझा रहे हैं
~ अब्दुल हमीद अदम
था कली के रूप शैशव-
में अहो सूखे सुमन,
मुस्कुराता था, खिलाती
अंक में तुझको पवन !
कर रहा अठखेलियाँ-
इतरा सदा उद्यान में,
अन्त का यह दृश्य आया-
था कभी क्या ध्यान में।
सो रहा अब तू धरा पर-
शुष्क बिखराया हुआ,
गन्ध कोमलता नहीं
मुख मंजु मुरझाया हुआ।
आज तुझको देखकर
चाहक भ्रमर घाता नहीं,
लाल अपना राग तुझपर
प्रात बरसाता नहीं।
जिस पवन ने अंक में-
ले प्यार था तुझको किया,
तीव्र झोंके से सुला-
उसने तुझे भू पर दिया।
कर दिया मधु और सौरभ
दान सारा एक दिन,
किन्तु रोता कौन है
तेरे लिए दीनी सुमन?
मत व्यथित हो फूल! किसको
सुख दिया संसार ने?
स्वार्थमय सबको बनाया-
है यहाँ करतार ने।
विश्व में हे फूल! तू-
सबके हृदय भाता रहा!
दान कर सर्वस्व फिर भी
हाय हर्षाता रहा!
जब न तेरी ही दशा पर
दुख हुआ संसार को,
कौन रोयेगा सुमन!
हमसे मनुज नि:सार को?
कली की पंखुरी पर ओस-कण में
रंगीले स्वपन का संसार हूँ मैं
मुझे क्या आज ही या कल झरुँ मैं
सुमन हूँ, एक लघु उपहार हूँ मैं
~ महादेवी वर्मा (“मुरझाया फूल” की चुनिंदा पंक्तियाँ )
न देखे विश्व, पर मुझको घृणा से
मनुज हूँ, सृष्टि का श्रृंगार हूँ मैं
पुजारिन, धूलि से मुझको उठा ले
तुम्हारे देवता का हार हूँ मैं
~ दिनकर (“परिचय” की चुनिंदा पंक्तियाँ)
और फिर साहिर लुधियानवी जी की सुने तो वो कहते हैं…
हज़ार बर्क़ गिरे लाख आँधियाँ उट्ठें
वो फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले है
~ साहिर लुधियानवी
याद है इक दिन
मेरी मेज़ पे बैठे-बैठे
सिगरेट की डिबिया पर तुमने
एक स्केच बनाया था
आकर देखो
उस पौधे पर फूल आया है !
~ गुलज़ार
जो तोको काँटा बुवै ताहि बोव तू फूल।
तो को फूल को फूल है वाको है तिरसुल॥
~ कबीर
अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए
जिस में इंसान को इंसान बनाया जाए
जिस की ख़ुशबू से महक जाए पड़ोसी का भी घर
फूल इस क़िस्म का हर सम्त खिलाया जाए
~ गोपालदास नीरज
चाह नहीं, मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध
प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं सम्राटों के शव पर
हे हरि डाला जाऊँ,
चाह नहीं देवों के सिर पर
चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ,
मुझे तोड़ लेना बनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक!
मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने,
जिस पथ पर जावें वीर अनेक!
~ माखनलाल चतुर्वेदी
और ये जीवन चक्र घूम फिर कर वापस मखदूम साहब के पास पहुँच गया..
फूल खिलते रहेंगे दुनिया में
रोज़ निकलेगी बात फूलों की
ये महकती हुई ग़ज़ल 'मख़दूम'
जैसे सहरा में रात फूलों की
~ मख़दूम मुहिउद्दीन