अदा 

इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा 

लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं 

~ मिर्ज़ा ग़ालिब


अंदाज़ अपना देखते हैं आइने में वो 

और ये भी देखते हैं कोई देखता न हो 

~ निज़ाम रामपुरी


कुछ इस अदा से आप ने पूछा मिरा मिज़ाज

कहना पड़ा कि शुक्र है परवरदिगार का

~ जलील मानिकपूरी


फ़क़त निगाह से होता है फ़ैसला दिल का 

न हो निगाह में शोख़ी तो दिलबरी क्या है 

~ अल्लामा इक़बाल


शोखियों में घोला जाए फूलों का शबाब

उसमे फिर मिलायी जाए थोड़ी सी शराब

होगा यूं नशा जो तैयार, वह प्यार हैं

~ नीरज 


शोख़ी-ए-हुस्न के नज़्ज़ारे की ताक़त है कहाँ 

तिफ़्ल-ए-नादाँ हूँ मैं बिजली से दहल जाता हूँ 

~ मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

तिफ़्ल-ए-नादाँ : मासूम, ignorant / innocent like a child तिफ़्ल - child 


साथ शोख़ी के कुछ हिज़ाब भी है 

इस अदा का कहीं जवाब भी है 

~ दाग़ देहलवी


ख़मोशी से अदा हो रस्म-ए-दूरी

कोई हंगामा बरपा क्यूँ करें हम

~ जौन एलिया


दिखाई दिए यूँ कि बे-ख़ुद किया 

हमें आप से भी जुदा कर चले 

जबीं सज्दा करते ही करते गई 

हक़-ए-बंदगी हम अदा कर चले

~ मीर तक़ी मीर

जबीं का अर्थ होता है ललाट या forehead और हक़-ए-बंदगी यानी truth of devotion


तुझ को देखा न तिरे नाज़-ओ-अदा को देखा 

तेरी हर तर्ज़ में इक शान-ए-ख़ुदा को देखा 

~ मिर्ज़ा मायल देहलवी


जान दी दी हुई उसी की थी

हक़ तो यूँ है कि हक़ अदा न हुआ

~ मिर्ज़ा ग़ालिब