इश्क़
क्या कहूं तुम से मैं क्या है इश्क
जान का रोग है बला है इश्क
~ मीर तकी मीर
हाल-ए-दिल मैं सुना नहीं सकता
लफ़्ज़ मा'ना को पा नहीं सकता
इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहद
अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता
~ अकबर इलाहाबादी
मकतब-ए-इश्क़ का दस्तूर निराला देखा
उस को छुट्टी न मिले जिस को सबक़ याद रहे
~ मीर ताहिर अली रिज़वी
इश्क़ से तबीअत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया
दर्द की दवा पाई दर्द-ए-बे-दवा पाया
~ मिर्ज़ा ग़ालिब
दिल में न हो जुरअत तो मोहब्बत नहीं मिलती
ख़ैरात में इतनी बड़ी दौलत नहीं मिलती
~ निदा फ़ाज़ली
जब तुम से मोहब्बत की हम ने तब जा के कहीं ये राज़ खुला
मरने का सलीक़ा आते ही जीने का शुऊर आ जाता है
~ साहिर लुधियानवी
प्रेम न खेतौं नीपजै, प्रेम न दृष्टि बिकाइ।
राजा परजा जिस रुचै, सिर दे सो ले जाइ॥
~ कबीर
दिल धड़कने का सबब याद आया
वो तिरी याद थी अब याद आया
~ नासिर काज़मी
ज़िंदगी किस तरह बसर होगी
दिल नहीं लग रहा मोहब्बत में
~ जौन एलिया
न पूछो हुस्न की तारीफ़ हम से
मोहब्बत जिस से हो बस वो हसीं है
~ आदिल फ़ारूक़ी
सौ चाँद भी चमकेंगे तो क्या बात बनेगी
तुम आए तो इस रात की औक़ात बनेगी
~ जाँ निसार अख़्तर
तुम्हें ज़रूर कोई चाहतों से देखेगा
मगर वो आँखें हमारी कहाँ से लाएगा
~ बशीर बद्र
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब'
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने
~ मिर्ज़ा ग़ालिब
तुम से बिछड़ कर ज़िंदा हैं
जान बहुत शर्मिंदा है
~ इफ़्तिख़ार आरिफ़
नाम पाहरू दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।
लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्राण कहीं बाट।।
~ तुलसीदास
मोहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफिर पे दम निकले
~ मिर्ज़ा ग़ालिब
नाज़-ओ-अंदाज़ से कहते हैं कि जीना होगा,
ज़हर भी देते हैं तो कहते हैं कि पीना होगा
जब मैं पीता हूँ तो कहतें है कि मरता भी नहीं,
जब मैं मरता हूँ तो कहते हैं कि जीना होगा
ये इश्क़ इश्क़ है इश्क़ इश्क़, ये इश्क़ इश्क़ है इश्क़ इश्क़
~ साहिर लुधियानवी
हम इश्क़ के मारों का इतना ही फ़साना है
रोने को नहीं कोई हँसने को ज़माना है
जो उन पे गुज़रती है किस ने उसे जाना है
अपनी ही मुसीबत है अपना ही फ़साना है
ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना ही समझ लीजे
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है
~ जिगर मुरादाबादी
होश वालों को ख़बर क्या बे-ख़ुदी क्या चीज़ है
इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िंदगी क्या चीज़ है
~ निदा फ़ाज़ली
उस की याद आई है सांसो जरा आहिस्ता चलो
धड़कनो से भी इबादत में खलल पड़ता है
~ राहत इंदौरी
इश्क़ में भी कोई अंजाम हुआ करता है
इश्क़ में याद है आग़ाज़ ही आग़ाज़ मुझे
~ ज़िया जालंधरी
आग थे इब्तिदा-ए-इश्क़ में हम
अब जो हैं ख़ाक इंतिहा है ये
~ मीर तक़ी मीर
तू ख़ुदा है न मिरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
दोनों इंसाँ हैं तो क्यूँ इतने हिजाबों में मिलें
~ अहमद फ़राज़
आशिकी में 'मीर' जैसे ख्वाब मत देखा करो
बावले हो जाओगे, महताब मत देखा करो
~ अहमद फ़राज़
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
~ फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया
वो लोग बहुत ख़ुश-क़िस्मत थे
जो इश्क़ को काम समझते थे
या काम से आशिक़ी करते थे
हम जीते-जी मसरूफ़ रहे
कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया
काम इश्क़ के आड़े आता रहा
और इश्क़ से काम उलझता रहा
फिर आख़िर तंग आ कर हम ने
दोनों को अधूरा छोड़ दिया
~ फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
वो काम भला क्या काम हुआ
जिस काम का बोझा सर पे हो
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ
जिस इश्क़ का चर्चा घर पे हो
वो काम भला क्या काम हुआ
जो मटर सरीखा हल्का हो
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ
जिसमें ना दूर तहलका हो
~ पियूष मिश्रा
सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं
~ अल्लामा इक़बाल