हास्य
गरीबों का पेट काटकर
उगाहे गए चांद से
ख़रीदा गया शाल
देश (अपने) कन्धो पर डाल
और तीन घंटे तक
बजाकर गाल
मंत्री जी ने
अपनी दृष्टी का संबन्ध
तुलसी के चित्र से जोड़ा
फिर रामराज की जै बोलते हुए
(लंच नहीं) मंच छोड़ा
मार्ग में सचिव बोला-
"सर, आपने तो कमाल कर दिया
आज तुलसी जयंती है
और भाषण गांधी पर दिया।"
मूँछो में से होंठ बाहर निकालकर
सचिव की ओर
आध्यात्मिक दृष्टि डालकर
मंत्री जी ने
दिव्य नयन खोले
और मुस्कुराकर बोले-
"तुलसी और गांधी में
कैसे अंतर?
दोनों ही महात्मा
कट्टर धर्मात्मा
वे सतयुग के
ये कलयुग के
तुलसी ने रामायण लिखी
गांधी ने गीता
तुमने तुलसीकृत
वाल्मीकी रामायण पढ़ी है?
नहीं पढ़ी न!
मुझे भी समय नहीं मिलता
मगर सुना है-
आज़ादी कि रक्षा के लिए
राम और रावण में
जो महाभारत हुआ
उसका आँखो देखा हाल
रामायण में देकर
तुलसी ने कर दिया कमाल
और गांधी की गीता में
क्या-क्या जौहर दिखलाए हैं
आज़ादी की सीता ने
तुमने पढ़ी है गीता?
मुझे भी समय नहीं मिलता
विनोबा जी से सुनी है
भाई, खूब सुनाते हैं
एक-एक चौपाई पर
गांधी साकार हो जाते हैं।"
सचिव ने आश्चर्य से पूछा-
"गीता में चौपाई?"
मंत्री जी बोले-"हमारा सचिव होते हुए
यह पूछते तुम्हें शर्म नहीं आई।"
~ शैल चतुर्वेदी
नए-नए मंत्री ने
अपने ड्राइवर से कहा—
‘आज कार हम चलाएँगे।’
ड्राइवर बोला—
‘हम उतर जाएँगे
हुज़ूर, चलाकर तो देखिए
आपकी आत्मा हिल जाएगी
यह कार है, सरकार नहीं जो
भगवान के भरोसे चल जाएगी।’
~ शैल चतुर्वेदी
अंतरपट में खोजिये, छिपा हुआ है खोट,
मिल जाएगी आपको, बिल्कुल सत्य रिपोट।
अंदर काला हृदय है, ऊपर गोरा मुक्ख,
ऐसे लोगों को मिले, परनिंदा में सुक्ख।
अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम,
भाग्यवाद का स्वाद ले, धंधा काम हराम।
~ काका हाथरसी
एक कविता काका के सफर पे.
'काका' वेटिंग रूम में फँसे देहरादून ।
नींद न आई रात भर, मच्छर चूसें खून ॥
मच्छर चूसें खून, देह घायल कर डाली ।
हमें उड़ा ले ज़ाने की योजना बना ली ॥
किंतु बच गए कैसे, यह बतलाएँ तुमको ।
नीचे खटमल जी ने पकड़ रखा था हमको ॥
हुई विकट रस्साकशी, थके नहीं रणधीर ।
ऊपर मच्छर खींचते नीचे खटमल वीर ॥
नीचे खटमल वीर, जान संकट में आई ।
घिघियाए हम- "जै जै जै हनुमान गुसाईं ॥
~ काका हाथरसी
बस में थी भीड़
और धक्के ही धक्के,
यात्री थे अनुभवी,
और पक्के।
पर अपने बौड़म जी तो
अंग्रेज़ी में
सफ़र कर रहे थे,
धक्कों में विचर रहे थे ।
भीड़ कभी आगे ठेले,
कभी पीछे धकेले ।
इस रेलमपेल
और ठेलमठेल में,
आगे आ गए
धकापेल में ।
और जैसे ही स्टाप पर
उतरने लगे
कण्डक्टर बोला-
ओ मेरे सगे !
टिकिट तो ले जा !
बौड़म जी बोले-
चाट मत भेजा !
मैं बिना टिकिट के
भला हूं,
सारे रास्ते तो
पैदल ही चला हूं ।
~ अशोक चक्रधर
एक नन्हा मेमना
और उसकी माँ बकरी,
जा रहे थे जंगल में
राह थी संकरी।
अचानक सामने से आ गया एक शेर,
लेकिन अब तो
हो चुकी थी बहुत देर।
भागने का नहीं था कोई भी रास्ता,
बकरी और मेमने की हालत खस्ता।
उधर शेर के कदम धरती नापें,
इधर ये दोनों थर-थर कापें।
अब तो शेर आ गया एकदम सामने,
बकरी लगी जैसे-जैसे
बच्चे को थामने।
छिटककर बोला बकरी का बच्चा-
शेर अंकल!
क्या तुम हमें खा जाओगे
एकदम कच्चा?
शेर मुस्कुराया,
उसने अपना भारी पंजा
मेमने के सिर पर फिराया।
बोला-
हे बकरी - कुल गौरव,
आयुष्मान भव!
दीर्घायु भव!
चिरायु भव!
कर कलरव!
हो उत्सव!
साबुत रहें तेरे सब अवयव।
आशीष देता ये पशु-पुंगव-शेर,
कि अब नहीं होगा कोई अंधेरा
उछलो, कूदो, नाचो
और जियो हँसते-हँसते
अच्छा बकरी मैया नमस्ते!
इतना कहकर शेर कर गया प्रस्थान,
बकरी हैरान-
बेटा ताज्जुब है,
भला ये शेर किसी पर
रहम खानेवाला है,
लगता है जंगल में
चुनाव आनेवाला है।
~ अशोक चक्रधर
‘पत्नी जी!
मेरो इरादो बिल्कुल ही नेक है
तू सैकड़ाँ मैं एक है।’
वा बोली—‘बेवकूफ मन्ना बणाओ
बाकी निन्याणवैं कूण-सी हैं
या बताओ!’
~ सुरेंद्र शर्मा
हमने अपनी पत्नी से कहा—
तुलसीदास जी ने कहा है—
‘ढोल गँवार सूद्र पशु नारी।
ये सब ताड़न के अधिकारी।’
इसका अर्थ समझती हो या समझाएँ?
पत्नी बोली—‘इसके अर्थ तो बिल्कुल ही साफ हैं
इसमें एक जगह मैं हूँ
चार जगह आप हैं।’
~ सुरेंद्र शर्मा
नेता भाषण दे कर आया
नौकर पर आ कर गुर्राया
मैं आया हूँ थका थकाया
पैर दबाओ राम लुभाया
नौकर बोला
एक ज़रूरी बात बता दूँ
भाषण से तो गला थका है
आप कहें तो गला दबा दूँ
~ हुल्लड़ मुरादाबादी
और एक ये उनके दोहों का संकलन भी पेश है
कर्ज़ा देता मित्र को, वह मूर्ख कहलाए,
महामूर्ख वह यार है, जो पैसे लौटाए।
बिना जुर्म के पिटेगा, समझाया था तोय,
पंगा लेकर पुलिस से, साबित बचा न कोय।
गुरु पुलिस दोऊ खड़े, काके लागूं पाय,
तभी पुलिस ने गुरु के, पांव दिए तुड़वाय।
पूर्ण सफलता के लिए, दो चीज़ें रखो याद,
मंत्री की चमचागिरी, पुलिस का आशीर्वाद।
नेता को कहता गधा, शरम न तुझको आए,
कहीं गधा इस बात का, बुरा मान न जाए।
बूढ़ा बोला, वीर रस, मुझसे पढ़ा न जाए,
कहीं दांत का सैट ही, नीचे न गिर जाए।
हुल्लड़ खैनी खाइए, इससे खांसी होय,
फिर उस घर में रात को, चोर घुसे न कोय।
हुल्लड़ काले रंग पर, रंग चढ़े न कोय,
लक्स लगाकर कांबली, तेंदुलकर न होय।
बुरे समय को देखकर, गंजे तू क्यों रोय,
किसी भी हालत में तेरा, बाल न बांका होय।
दोहों को स्वीकारिये, या दीजे ठुकराय,
जैसे मुझसे बन पड़े, मैंने दिए बनाय।
~ हुल्लड़ मुरादाबादी
अच्छा है पर कभी-कभी
बहरों को फ़रियाद सुनाना, अच्छा है पर कभी-कभी
अंधों को दर्पण दिखलाना, अच्छा है पर कभी-कभी
ऐसा न हो तेरी कोई, उँगली ग़ायब हो जाए
नेताओं से हाथ मिलाना, अच्छा है पर कभी-कभी
बीवी को बंदूक़ सिखाकर तुमने रिस्की काम किया
अपनी लुटिया आप डुबाना, अच्छा है पर कभी-कभी
हाथ देखकर पहलवान का, अपना सिर फुड़वा बैठे
पामिस्ट्री में सच बतलाना, अच्छा है पर कभी-कभी
तुम रूहानी शे'र पढ़ोगे, पब्लिक सब भग जाएगी
भैंस के आगे बीन बजाना, अच्छा है पर कभी-कभी
घूँसे-लात चले आपस में, संयोजक का सिर फूटा
कवियों को दारू पिलवाना, अच्छा है पर कभी-कभी
पच्चीस डॉलर जुर्माने के पीक थूकने में ख़र्चे
वाशिंगटन में पान चबाना, अच्छा है पर कभी-कभी
~ हुल्लड़ मुरादाबादी
मसखरा मशहूर है, आँसू बहाने के लिए
बाँटता है वो हँसी, सारे ज़माने के लिए
घाव सबको मत दिखाओ, लोग छिड़केंगे नमक
आएगा कोई नहीं मरहम लगाने के लिए
देखकर तेरी तरक्की, ख़ुश नहीं होगा कोई
लोग मौक़ा ढूँढते हैं, काट खाने के लिए
फलसफ़ा कोई नहीं है, और न मकसद कोई
लोग कुछ आते जहाँ में, हिनहिनाने के लिए
मिल रहा था भीख में, सिक्का मुझे सम्मान का
मैं नहीं तैयार झुककर उठाने के लिए
ज़िंदगी में ग़म बहुत हैं, हर कदम पर हादसे रोज
कुछ समय तो निकालो, मुस्कुराने के लिए
~ हुल्लड़ मुरादाबादी
मय भी होटल में पियो, चन्दा भी दो मस्जिद में
शेख़ भी ख़ुश रहे, शैतान भी बेज़ार न हो
~ अकबर इलाहाबादी
और अपनी ही वकालत के पेशे पे तंज़
पैदा हुआ वकील तो शैतान ने कहा
लो आज हम भी साहिब-ए-औलाद हो गए
~ अकबर इलाहाबादी
रिंग रोड पर मिल गए नेता जी बलवीर ।
कुत्ता उनके साथ था पकड़ रखी जंजीर ॥
पकड़ रखी जंजीर अल्शेशियन था वह कुत्ता ।
नेता से दो गुना भौंकने का था बुत्ता ॥
हमने पूछा, कहो, आज कैसे हो गुमसुम ।
इस गधे को लेकर कहाँ जा रहे हो तुम ॥
नेता बोले क्रोध से करके टेढ़ी नाक ।
कुत्ता है या गधा है, फूट गईं हैं आँख ॥
फूट गईं हैं आँख, नशा करके आए हो ।
बिना बात सुबह-सुबह लड़ने आए हो ॥
हमने कहा कि कौन आपसे जूझ रहे हैं ।
यह सवाल तो हम कुत्ते से पूछ रहे हैं ॥
~ काका हाथरसी